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जो मुनि को दे भोजन, अचित मिलायकें। ‘पूतिकर्म' यह दोष, सुदातृ उपाय के।।
सो भोजन मुनि तजे, एषणा लाय जी। या जुत सम्यग्वृत्त, जजो शिवदाय जी।। ओं ह्रीं पूतिकर्मदोषरहितैषणासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
मुनि को भोजय देय, असंयमि साथ जी। तो दाता के दोष, ‘मिश्र' विख्यात जी।।
सो भोजन मुनि तजे, एषणा लाय जी। या जुत सम्यग्वृत्त, जजो शिवदाय जी।। ओं ह्रीं मिश्रदोषरहितैषणासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
थानान्तर भोजन दे, मुनि को लायकें। तो 'स्थापित' ले दोष, दातृ अधिकाय के।।
सो भोजन मुनि तजे, एषणा लाय जी। या जुत सम्यग्वृत्त, जजो शिवदाय जी।। ओं ह्रीं स्थापितदोषरहितैषणासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
देव पितर को कियो, मुनी को दे सही। तो दाता बलि दोष, आप सिर ले सही।। सो भोजन मुनि तजे, एषणा लाय जी। या जुत सम्यग्वृत्त, जजो शिवदाय जी।। ओं ह्रीं बलिदोषरहितैषणासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
वेग बेग वा धीरे, मुनि को आहार दे। प्रावर्तित' अघ सोय, दातृ के सिर बँदे।। सो भोजन मुनि तजे, एषणा लाय जी। या जुत सम्यग्वृत्त, जजो शिवदाय जी।। ओं ह्रीं प्रावर्तितदोषरहितैषणासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
मुनिभोजन का थान, प्रकाशित जो करे। प्राविष्करण' सुदोष, दातृ निजशिर धरे।।
सो भोजन मुनि तजे, एषणा लाय जी। या जुत सम्यग्वृत्त, जजो शिवदाय जी।। ओं ह्रीं प्राविष्करणदोषरहितैषणासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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