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जय फाल्गुन सुदि नौमी बखान, सुरपति सुर गर्भकल्यान ठान।। जय मार्गशीर्ष शशि उदय पक्ष, नौमी तिथि जगमें भये प्रत्यक्षा जय जन्म-महोत्सव इन्द्र आय, सुर गति ले इन्द्र न्हवन कराय।।
जय वज्रवृषभ नाराच देह दश शत वसु लक्षण सुनहि गेह। जय राजनीति कर राज कीन, मगसिरसित पड़वा तप सु लीन।। जय घता घाति या कर्म धीर, निज आतम शक्ति प्रकाश वीर। जय कार्तक सुदी दुतिया महान, लहि केवलज्ञान उद्योत भान।। जय भव्य जीव उपदेश देय, जग जलदि उबारन सुजस लेय। जय भादों सुदी आठे प्रसिद्ध, इन शेष कर्म प्रभु भये सिद्ध।।
जय जय जगदीश्वर भये देव, भृगु तजहिं दोपहर करत सेव।
जय मनवांछित तुम करत ईश, मनशुद्ध जलधि तुम नमत शीश।। ऊँ ह्रीं शुक्र अरिष्टनिवारक पुष्पदन्त जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
सब गुण अधिकारी, दूषण हारी, भारी रोगादिक हरनं। भृगु सत दुख जाई, पाप मिटाई, पुष्पदन्त पूजत चरणं
।। इति आशीर्वादः।
शनि अरिष्टनिवारण श्री मुनिसुव्रत जिनपूजा
(दोहा) जन्म लग्न गोचर समय, रवि सुत पीड़ा देय। तब मुनिसुव्रत पूजिये, पातक नाश करेय।।
(अडिल्ल छन्द) मुनिसुव्रत जिनराज काम जिन करनको। सूर्य पुत्र ग्रह क्रूर, अनिष्ट जु हरन को।
आह्वानन कर तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः करो। होय सन्निधि जिनराय, भव्य पूजा करो।। ऊँ ह्रीं शनि अरिष्टनिवारक श्री मुनि सुव्रत जिन अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वानन। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
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