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(अडिल्ल छन्द) मन वच काया शुद्ध पवित्र जु हूजिये। लेकर आठों दरव आठ जिन पूजिये। मंगलीक वसु वस्तु पूर्ण सब लीजिये। पूरन अर्घ मिलाय आरती कीजिये।।
ऊँ ह्रीं गुरुअरिष्टनिवारक श्री अष्टजिनेभ्यो महाघु निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला सुर गुरु दुख नाशन, कमलपत्रासा, वसुविधि वसुजिन पूजकरं। भव भव अघहरनं, सबसुखकरनं, भव्यजीव शिवधामधर।। जय धर्म-धुरंधर ऋषभ धार, जय मुक्ति कामनी कन्त सार। जय अजितकर्म अरि प्रबल जान, जय जीतलियो सगुणनिधान। जय सम्भव सम्भव दम्भ छेद, जय मुक्ति रमा लइयो अखद। जय अभिनन्दन आनंदकार, जय जय जन सुखकर्ता अपार।। जय सुमति देव देवाधिदेव, जय शुभमतिजुत सुरकरहि सेव। जय जय सुपाश्व सुख परमज्ञान, जय लोकालोक प्रकाशमान।। जय जन्म-जरा मृत वन्हि हर्न जय तिनका हमको नित्य शणं।
जय श्रेयकरन श्रेयांसनाथ, जय श्रेयसपद दय मुक्ति साथ।। जय जय गुणगरिमा जग प्रधन जय भव्य कमल परकाश भान।
जय मनसुखसागर नमत शीश, जय सरगुरु दोषन मेट ईश। ऊँ ह्रीं गुरुअरिष्ट निवारक श्री अष्ट जिनेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
इत्याशीर्वादः
(दोहा) आठ जिनेश्वर पूजते, आठ कम दुख जाय। अष्ट सिद्धि नव निधि लहैं, सुरगुरु होय सहाय।।
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