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सुख होय अविकारी ग्रहदुखहारी, भवजल भारी नीरतरा।।
ऊँ ह्रीं भौम अनिष्टनिवारक श्रीवासुपूज्य जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय महार्घं निर्वपामीति
स्वाहा।
इतिश्री भीमअरिष्टनिवारक श्री वासुपूज्यजिनपूजन संपूर्ण ।
बुधग्रह अरिष्ट निवारक अष्ट जिनपूजा
सौम्य ग्रह पीड़ा करैं, पूजों आठ जिनेश । आठ गुण जिनमें लसें, नावत शीश सुरेश ।। विमलनाथ जिन नमों, नमो जु अनन्तनाथ जिन।
धर्मनाथ जिन बंद बंद हौं, शांति शांति जिन ।। कुन्थु अरह जिन सुमरि, सुमरि पुनि वर्धमान जिन। इन आठों जिन जजों, भजों सुख करन चरन तिन।। बुध महाग्रह अशुभता धरत करत दुख जोर जब। आह्वाननम् कर तिष्ठ तिष्ठ, सन्निधि करहु तव ।
ऊँ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीअष्टजिन जिन अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वानन, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्, परिपुष्पांजलि
क्षिपेत्।
अथाष्टक (गीता छन्द)
हेम झारी जड़ित मन जल भरों क्षीरोदक तनं।
धार देत जिनराज आगे, पाप ताप जु नाशनं ।।
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