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मंगल अरिष्टनिवारक श्री वासुपूज्य पूजा
वासुपूज्य जिन चरण युग भूसुत दोष पलाय । ताते भवि पूजा करो, मनमें अति हरषाय । वासुपूज्य के जन्म समय हरषायके । आये गज ले साज इन्द्र सुख पायके।। लै मंदिर गिर जाय जु न्हवन करायके । सोंपे माता जाय जो नाम धराय के।। ऊँ ह्रीं भौम अनिष्टनिवारक श्रीवासुपूज्य जिन! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वानन, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
कनक झारी अधिक उत्तम रतन जड़ित सु लीजिये। पद्म द्रहको जल सुगंधित कर धार चरनन दीजिये।।
भूतनय दूषण दूर नाश जु सकल आरत टारके। श्रीवासुपूज्य जिन चरन पूजौ हर्ष उरमें धारके ।
ऊँ ह्रीं भौम अनिष्टनिवारक श्रीवासुपूज्य जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय जलं निर्वपामीति
स्वाहा।
श्रीखण्ड मलय जु महा शीतल सुरभ चंदन विस धरौ । जिन चरन चरचों भविक हित सों पाप ताप सब हरौं । ।
भूतनय दूषण दूर नाश जु सकल आरत टारके।
श्रीवासुपूज्य जिन चरन पूजौ हर्ष उरमें धारके॥
ऊँ ह्रीं भौम अनिष्टनिवारक श्रीवासुपूज्य जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय चंदनं निर्वपामीति
स्वाहा।
अक्षत अखण्डित सुरभि मंडित थारी भर कर मैं गहों। अक्षत सु पुंज दिवाय जिन पद अखय पदमें जो लहों ॥
भूतनय दूषण दूर नाश जु सकल आरत टारके। श्रीवासुपूज्य जिन चरन पूजौ हर्ष उरमें धारके ||
ऊँ ह्रीं भौम अनिष्टनिवारक श्रीवासुपूज्य जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय अक्षतं निर्वपामीति
स्वाहा।
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