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शुभ पुण्य उदय से मानुषकुल लहि जिन मारग रुचि लाया है। 5 ।
व्रत धार दिगम्बर मोह निबलकर उपशम भाव कराया है। निर्ग्रथ अवस्था के बल से झट अमर पुरी को धाया है।6। फिर निकसि तहां तैं त्रस थावर में बहुत काल भटकाया है।
यों मोह कर्मवश जीव अनन्ते नाना संकट पाया है। 7। नित्य निगोद मांहि तैं कढि लहि मानुष भव मग पाया है। वसु वर्ष बिताकर सम्यक्त गहि दर्शन मोह खिपाया है।8। धर ध्यान शुक्लवर क्षपक श्रेणि चढ घाति चतुष्क नशाया है। फिर केवल बोध प्रकाशि चराचर भवि शिवपथ लगाया है।9। जयधवल तुम्हारे शासन ने मिथ्यातम दूर भगाया है। सद्ज्ञान प्रकाश किया जगमें भवि जीवन को समझाया है।10। कर्म अघाती चूर अनन्तर, सिद्ध स्वरूप लहराया है। शुद्धस्वरूप में लीन भये तब आवागमन मिटाया है।11। यति वृषभ सूरि ने मोह कर्म के भेद बहुत दरशाये हैं। चौबिस अनुयोग प्ररूपण कर शुभ ओघादेश रचाये हैं।12। इत्यादिक वर्णन बहुत किया एकाग्र ध्यान उर लाया है। सब साठ हजार श्लोकनि में जयधवल नाम शुभ पाया है। 13। इनका संक्षेप स्वरूप ग्रहण कर गोमटसार रचाया है।
श्री नेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रि ने जग का भर्म मिटाया है।14। फिर नय प्रमाण निक्षेप विवक्षा भेद समझ मन लाया है।
त्रय योग शुद्ध कर श्रवण मनन से पाप समूह नशाया है। 15।
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