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कुन्द कमल गुलाब केतक, मालती जाही जुही कामबाण विनाश कारण, पूजि जिनमाला गुही || रवि सोम भू सौम्य गुरु कवि, शनि नमो पूतकेतवै। पूजिये चौंवीस जिन ग्रहारिष्ट नाशन हेतवै।।
ऊँ ह्रीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
फैनी सुहारी पुवा पापर, लेऊ मोदक घेवरं ।
शत छिद्र आदिक विविध विजन, क्षुधा हर बहु सुखकरं ।।
रवि सोम भूमज सौम्य गुरु कवि, शनि नमो पूतकेतवै।
पूजिये चौंवीस जिन ग्रहारिष्ट नाशन हेतवे ।।
ऊँ ह्रीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
मणिदीप जग मग जोत तमहर, प्रभू आगे लाइये। अज्ञान नाशक निज प्रकाशक, मोह तिमिर नसाइये ||
रवि सोम भूमज सौम्य गुरु कवि, शनि नमो पूतकेतवै। पूजिये चौवीस जिन ग्रहारिष्ट नाशन हेतवे ।।
ॐ ह्रीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
कृष्णा अगर घनसार मिश्रित, लोंग चन्दन लेइये। ग्रहारिष्ट नाशन हेत भविजन धूप जिन पदखेइये।।
रवि सोम भूमज सौम्य गुरु कवि, शनि नमो पूतकेतवै। पूजिये चौंवीस जिन ग्रहारिष्ट नाशन हेतवे ।।
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