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दोहा
परमातम जिनबिम्ब में, राजत है सुख रूप। जो पूजे शुभ भाव सौं, पावे भाव अनूप।।11॥ ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपस्थ द्विपञ्चाशज्जिनालयस्थ जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।। नन्दीश्वर अष्टम् द्वीप की, पूज करो हरषाय। स्वर्गों के सुख भाग 'रवि'', मुक्तवधू को पाय॥
इत्याशीर्वादः॥
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