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धरै नीर चंदन अक्षत पहुप भारी। नईवेद दीपक भला धूप थारी।। धरी अर्घ करले भली भक्त माला। जजौं मेरु मन्दिर सम्बन्धि जिनाला॥9॥
ऊँ ह्रीं मंदिरमेरुसम्बन्धिजिनालयेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
अर्थ प्रत्येक अर्घ (मुनियानन्द की चाल) मेरु मंदिर तनी भौम में जानिये। महा बन भद्रसाला सुखद मानिये।। तास मध्य चार जिन थान पुण्य की मही। सो जजौं अर्घ तें वीनती मुख कही॥1॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुभद्रसालवन सम्बन्धिचतुर्जिनचैत्यालयभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
ऊपरै मेरु मन्दिर तनो जानिये। नन्दन वन सोभिए महा सुख मानिये।। ता विर्षे चार जिनराज मन्दिर सही। सो जजौं अर्घ सों वीनती मुख कही।।2।। ऊँ ह्रीं मंदिरमेरु नन्दनवनसम्बन्धिचतुर्जिनचैत्यालयेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
मेरु मन्दिर तने ऊपरे सारजी। सौमवन है सही सकल सुख कारजी।। ता विषे चार जिन देव मंदिर सही। सो जजौं अर्घसों वीनती मुख कही।।3।। ऊँ ह्रीं मंदिरमेरु सौमनसवनसम्बन्धिचतुर्जिनचैत्यालयेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
ऊपरै मेरु मन्दिर तने जानिये। पांड्वन सोहनो तीर्थ सो मानिये। चार जिन थान विन कि तहां हैं सही। सो जजो अर्घतें वीनती मुख कही।।4।। ऊँ ह्रीं मंदिरमेरु पांडुकवनसम्बन्धिचतुर्जिनचैत्यालयेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
मेरु मन्दिर दक्षिण दिशा जोय जी। वृक्ष जंबू कहौ रतन मय सोयजी।। ___ तास ऊपर कहौ थान जिनको सही। सो जजौं अर्घ तें वीनती मुख कही।।5। ऊँ ह्रीं मंदिरमेरु भद्रसालवनसम्बन्धिचतुर्जिनचैत्यालयेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
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