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भद्रसाल वन मेरु की, जड़ भौम मझार।
ता ऊपर फिर जाइये, वन नन्दन सार।। मेरु सुदरशन सोहनौ, तीरथ पद सुखदाय।।3।।
ता ऊपर वन सोम है, तीजौ वन सोय। ऊपर पांडुक वन कहो, चौथो अवलोय।। मेरु सुदरशन सोहनौ, तीरथ पद सुखदाय।।4।। इस वन वन, चव जानिये, श्रीजिनवर ठाम।
कनक रतन जडिये सही, सब करो प्रणाम।। मेरु सुदरशन सोहनौ, तीरथ पद सुखदाय।।5।। ठाम ठाम सर बावड़ी, शुभ महल अनूप।
देव तहां क्रीड़ा करें, वापक गुन रूप।। मेरु सुदरशन सोहनौ, तीरथ पद सुखदाय।।6।। कै चारन मुनि जाय हैं, जिन वंदन काज।
ध्यान धरै शुभ थानमें, पावै शिवराज।। मेरु सुदरशन सोहनौ, तीरथ पद सुखदाय।।7।।
पांडुक वन में जानिये, मघ चूलक ठाम।
वैडूरक मणिमय सही, रंग हरत सुधाम।। मेरु सुदरशन सोहनौ, तीरथ पद सुखदाय।।8।। जोजन तुंग चालीस है, तिस ऊपर जोय।
केस अन्तरै स्वर्ग है, सौधर्म जुग सोय।। मेरु सुदरशन सोहनौ, तीरथ पद सुखदाय।।9।।
इत्यादिक महिमा-घनी, कवलों वरनाय। सहस जीमत कीजिये, तोहु पार न पाय।।
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