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जिन थान शालमलि वृक्ष ठांहि। मुख मकहमा कहते पार नाहिं।।
तैं पूजों वसु द्रव अर्घ लाय। संबंध सुदर्शन मेरु पाय।।7। ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुशाल्मलिवृक्षस्थजिनालयाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
सुदरशन मेरुदक्षिणदिसाय। जिनथान कुलाचल पैजो पाय।।
तिनमें जिनबिंब मनोज्ञ सोय। जिनके पद पजों दीन होय।।8।। ऊँ ह्रीं सुदर्शनमेरुसम्बन्धिदक्षिणदिक्कुलाचलस्थजिनालयाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
उत्तर दिश याही मर जानि। जिन भवन कुलाचल पै सु थान।।
तिनमें जिनबिंब मनोज्ञ सोय। जिनके पद पूजों दीन होय।।9।। ऊँ ह्रीं सुदर्शनमेरुसम्बन्धिउत्तरदिशात्रयकुलाचलस्थजिनालयाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
सुदरशन मेरु पूरब दिशाय। जिन थान वक्ष्यारन सीस पाय।।
तिनमें जिनबिंब मनोज्ञ सोय। जिनके पद पूजों दीन होय।।10। ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुपूर्वदिशासम्बन्ध्यष्टवक्ष्यारगिरिस्थजिनालयेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
पच्छिम दिश येही मेरु सार। विक्ष्यारन पै जिन भवन धार।।
तिनमें जिनबिंब मनोज्ञ सोय। जिनके पद पूजों दीन होय।।11॥ ऊँ ह्रीं सुदर्शनमेरुपच्छिमंदिशासम्बन्ध्यष्टवक्षारगिरिस्थजिनालयेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
इस मेरु सुदरशन पूर्व जाय। विजयारध पै जिनभवन पाय।।
तिनमें जिनबिंब मनोज्ञ सोय। जिनके पद पूजों दीन होय।।12। ऊँ ह्रीं सुदर्शनमेरुसम्बन्धिपूर्वदिशायाः षोडश विजयार्धपर्वतस्थजनालयेभ्यो
अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
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