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फूल कलप द्रमके सुखरूप। लायो माला गूंथ अनूप।।
मेरु सुदर्शन जिनके धाम, षोडश पूजों तीरथ ठाम।। ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरु संबंधि षोडश जिनालयेभ्यो पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
नानारस नैवेद्य बनाय। मोदक आदिभले सुखदाय।।
मेरु सुदर्शन जिनके धाम, षोडश पूजों तीरथ ठाम।। ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरु संबंधि षोडश जिनालयेभ्यो नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
दीपक रतनमई तमहार। लायो धर पातर मैं सार।।
मेरु सुदर्शन जिनके धाम, षोडश पूजों तीरथ ठाम।। ऊँ ह्रीं सुदर्शनमेरु संबंधि षोडश जिनालयेभ्यो दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
सारधूप दशगंध बनाय। खेऊँ जिन चरनन सुखदाय।।
मेरु सुदर्शन जिनके धाम, षोडश पूजों तीरथ ठाम।। ऊँ ह्रीं सुदर्शनमेरु संबंधि षोडश जिनालयेभ्यो धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
श्रीफलखारक अनिफल और। लायो भक्त हिये धर जोर।।
मेरु सुदर्शन जिनके धाम, षोडश पूजों तीरथ ठाम।। ऊँ ह्रीं सुदर्शनमेरु संबंधि षोडश जिनालयेभ्यो फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जलचंदन अक्षत पुह लेय। चरू दीपक फल धूप सुखेय।।
मेरु सुदर्शन जिनके धाम, षोडश पूजों तीरथ ठाम।। ऊँ ह्रीं सुदर्शनमेरु संबंधि षोडश जिनालयेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
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