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दोहा
कर्मनाश शिव को गये, तिन प्रति अघ्य चढ़ाय । त्रिविधयोगकरि पूज है, मनवांछित फलदाय।।
ओं ह्रीं शांतिप्रभकूटतः श्रीशांतिनाथ जिनेन्द्रादि नौकोड़ाकोडि नौ लाख नौ हजार नौ सौ निन्यानवे मुनि सिद्धपदप्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
15. कुंथुनाथ, ज्ञानधरकूट (गीतिका छन्द) ज्ञानधर शुभकूट सुन्दर, परम मनमोहन सही। जँहतें श्री प्रभु कुन्थुस्वामी, गये शिवपुर की मही।। कोड़ा सु कोड़ी छ्यानवै मुनि, कोडि छ्यानव जानिये। अरुलाखवत्तिससहसछ्यानव, शतकसात प्रमानिये।।
दोहा
और कहे व्यालीस मुनि, सुमरो हिये मँझार। तिनपद पूजों भावसों, कर भवदधि से पार।।
ओं ह्रीं ज्ञानधरकूटतः श्रीकुन्थुनाथ जिनेन्द्रादि छ्यानवेकोड़ाकोडि छ्यानवेकोडि बतीसलाख छयानवे हजार सात सौ व्यालीस मुनि सिद्धपदप्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः अयम् निर्वपामीति स्वाहा।
16. अरहनाथ, नाटककूट दोहा
कूट जु नाटक परम शुभ, शोभा अपरम्पार । जँहतें अर जिनराज जी, पहुँचे मुक्ति मँझार कोडिनिन्यावजानिमुनि, लाखिनिन्यावन और। कहे सहस निन्यानवै, बन्दों कर जुग जोर।
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