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बलि विधानऊँ भृगराजाय स्वाहा। भंगराज परिजनाय स्वाहा। शृंगराजा अनुचराय स्वाहा। वरुणाय स्वाहा। सोमाय स्वाहा। प्रजापतये स्वाहा। ऊँ स्वाहा। ऊँ: भूः स्वाहा। भुवः स्वाहा। भू र्भुव स्वाहा।
स्वः स्वाहा स्वधा।
अर्घहे भुंगराज इदमध्यं पाद्यं जलं, गंध, अक्षतं, दीपं, धूपं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फलं स्वस्तिकं यज्ञ
भागं यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतां इति स्वाहा।32।
बलिं- रबड़ी। यस्यार्थं क्रियते पूजा तस्य शान्तिं भवेत सदा, शान्तिकं पौष्टिकं चैव सर्वकार्येषु सिद्धिदः।। (शान्तिधारा)
आराधना श्लोक__ मृषीकृता धर्म पर प्रभावं मृषोक्ति दूरं मृषनाम धेयम्। रक्षौधि पायात्त मुदारशक्तिं माषान्न संतर्पित मातनोतु।।33॥
आह्वानॐ आं क्रौं ह्रीं मेघ वर्ण सर्व लक्षण सम्पूर्ण स्वायुध वाहन-वधु चिन्ह सपरिवार हे मृषदेव
आगच्छ, आगच्छ स्व स्थाने तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्वाहा।
बलि विधानऊँ मृषाय स्वाहा। मृष परिजनाय स्वाहा। मृषा अनुचराय स्वाहा। वरुणाय स्वाहा। सोमाय स्वाहा। प्रजापतये स्वाहा। ऊँ स्वाहा। ऊँ: भूः स्वाहा। भुवः स्वाहा। भू भूव स्वाहा। स्वः
स्वाहा स्वधा।
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