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बलि विधानॐ अंतरिक्ष स्वाहा। अंतरिक्ष परिजनाय स्वाहा। अंतरिक्षा अनुचराय स्वाहा।
वरुणाय स्वाहा। सोमाय स्वाहा। प्रजापतये स्वाहा। ऊँ स्वाहा। ऊँ: भूः स्वाहा। भुवः स्वाहा।
भू (व स्वाहा। स्वः स्वाहा स्वधा।
अर्घ
हे अंतरिक्ष इदमध्यं पाद्यं जलं, गंध, अक्षतं, दीपं, धूपं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फलं स्वस्तिकं
यज्ञ भागं यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतां इति स्वाहा।27।
बलिं- हल्दी, उड़द का चूर्ण। यस्यार्थं क्रियते पूजा तस्य शान्तिं भवेत सदा, शान्तिकं पौष्टिकं चैव सर्वकार्येषु सिद्धिदः।। (शान्तिधारा)
आराधना श्लोकपुष्णाति यः सज्जनतोपकारं मुष्णातु चासज्जन दुर्विलासम्। कृपीट योनेः सुहृदेष पूषा शिंबान्न मेतत्सपयः प्रतीच्छेत्।।28।।
आह्वानॐ आं क्रौं ह्रीं रक्त वर्ण सर्व लक्षण सम्पूर्ण स्वायुध वाहन-वधु चिन्ह सपरिवार हे पुष्प
आगच्छ, आगच्छ स्व स्थाने तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्वाहा।
बलि विधानॐ पुष्पाय स्वाहा। पुष्प परिजनाय स्वाहा। पुष्पा अनुचराय स्वाहा। वरुणाय स्वाहा। सोमाय स्वाहा। प्रजापतये स्वाहा। ऊँ स्वाहा। ऊँ: भूः स्वाहा। भुवः स्वाहा। भू र्भुव स्वाहा। स्वः
स्वाहा स्वधा।
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