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बलि विधानॐ आपवत्साय स्वाहा। आपवत्स परिजनाय स्वाहा। आप वत्सा अनुचराय स्वाहा। वरुणाय स्वाहा। सोमाय स्वाहा। प्रजापतये स्वाहा। ऊँ स्वाहा। ऊँ: भूः स्वाहा। भुवः स्वाहा। भू (व
स्वाहा। स्वः स्वाहा स्वधा।
अर्घहे आपवत्स इदमध्यं पाद्यं जलं, गंध, अक्षतं, दीपं, धूपं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फलं स्वस्तिकं
यज्ञ भागं यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतां इति स्वाहा।21।
बलिं- गुड़ चावल का लोट, सफेद कमल, शंख, अम्बोली।
यस्यार्थं क्रियते पूजा तस्य शान्तिं भवेत सदा, शान्तिकं पौष्टिकं चैव सर्वकार्येषु सिद्धिदः।। (शान्तिधारा)
आराधना श्लोकपर्जन्य पर्जन्य निनादतुल्य नादेन दुरीकृत वैरिलोक। स्वतर्जनी चालन तर्जितात्म वाचाट भृत्याज्य मुपैहि रौद्र।।22॥
आह्वानऊँ आं क्रौं ह्रीं जल वर्ण सर्व लक्षण सम्पूर्ण स्वायुध वाहन-वधु चिन्ह सपरिवार हे पर्जन्त
आगच्छ, आगच्छ स्व स्थाने तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्वाहा।
बलि विधानऊँ पर्जन्याय स्वाहा। पर्जन्य परिजनाय स्वाहा। पर्जन्या अनुचराय स्वाहा। वरुणाय स्वाहा। सोमाय स्वाहा। प्रजापतये स्वाहा। ऊँ स्वाहा। ऊँ: भूः स्वाहा। भुवः स्वाहा। भू (व स्वाहा। स्वः स्वाहा स्वधा।
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