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बिन दिये पर का माल कबहूं, मन वचन छूवें नहीं। तन आपने हू तें सुविरकत, दिये तें भोजन लही।
काय नग्न चलें सुचर्या, याचनामति ना करें। साधु पूजों अय कर ले,तास फ M संचरें। ऊँ ह्रीं अचौर्यमहाव्रतसहितसाधुपरमेष्ठिभ्यः अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
नारि, देव मनुष्य पशु की, मन वचन तन करि तजें।
सो शीलधर हो बालसम, निर्दोष अपनी पद सजें।।
ते जगत तिय तजि मुकति नारी, वरन को उद्यम करें।। साधु पूजों अय कर ले, तास फल सुख संचरें।। ऊँ ह्रीं ब्रह्मचर्यमहाव्रतसहितसाधुपरमेष्ठिभ्यः अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जे तजें दो विध ही परिग्रह, बाह्य अन्तर जानिये । तिलमात्र पुद्गल बन्ध सेती, ममत की विधि भानिये।। रहे विमुख सुभाव तन ते, सोहि ममता उर धरें।। साधु पूजों अय कर ले, तास फल सुख संचरें।। ऊँ ह्रीं परिग्रहत्यागमहाव्रतसहितसाधुपरमेष्ठिभ्यः अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
ते
चार कर भू शोधकें पद, धर शुभचित लायके । जो बने कारन जोर इत उत तो लखें नहिं भायके || त्रसजीव थावर सकल सेती, भाव समता उर धरें।।
ते साधु पूजों अघ्य कर ले, तास फल सुख संचरें।। ऊँ ह्रीं ईर्यासमितिसहितसाधुपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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