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सौधर्म अनुत्तर गति-मंझार, इक लाख सहस गनि पंच सार।।
वसु सौ मुनि भाषिक हे जिनेश! चौबीस यक्ष भाषे मुनेश। जय यक्षिणि चौबिस कहीं गाय, अब सिद्धक्षेत्र भाषों बनाय।।
चम्पापुरि पावापुरि निहार, गिरनार शिखर कैलाश धार। सम्मेदशिखर जग में महान, जो बीस जिनेश्वर मोक्षस्थान।।
जय एक बार वन्दै जु कोय, तिर्यंच-नरकगति तजे सोय। चौबीसों जिन संग मोक्ष पाय, गनि ग्यारह सहस दिये बताय।।
इक घाट पाँच सौ कहे वीर, जिन-संग मोक्ष पहुँचे सु धीर। दिन चौदह वृषभ सु योग ध्यान, छह दिन श्री वीर-जिनेशमान।। बाइस जिन महिमा बीस दोय, जिन जोग ध्यान जानो सु लोय। शुभ दिन जिन मोक्ष गये निहार, मोक्षासन सुनि मन में विचार।। जय आदिनाथ जिन नेमिनाथ, जब वासुपूज्य भवि नमों माथ। पद्मासन मोक्ष गये सु मान, जिन इक इस आसन ऊर्ध्व जान।। शिव जाय विराजे सुख अनन्त, सब लोकालोक-विलोक सन्त। जय तिन गुण-गावत हरष-पाय, सुरनर थेइ-थेइ-मिलि कर तजाय।।
जय-जय जयवन्ते होउ देव, इन्द्रादिक सब मिल करें सेव। जय श्रावक सब सुख रायमान, गुणवान् बड़े विरले सु जान।।
तिन मुख-तें वाणी अर्थ पाय, शुभ छन्द रचे अक्षर मिलाय। पण्डित पढ़ शोध धरो बनाय, लखि तुच्छ बुद्धि ‘कवि लाल' पाय।।
दोहा समवसरण को पाठ यह, जो बाँचे मन लाय।
सम्यक्-सहित सुभाव-सों, सूधो शिवपुर जाय।। ऊँ ह्रीं समवसरणस्थचतुर्विंशतिजिनेन्द्रेभ्यः पूर्णाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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