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प्राणी श्री जिन-चर्ण चढ़ाय के वसुकर्म दये सु जराय।।
प्राणी इन्द्र सुरग-तें आय के पूजत शिवनायक-पाँय। प्राणी चौबीसों जिन पजिये, प्राणी चौबीसों जिन पूजिये।। ऊँ ह्रीं समवसरणस्थ चतुर्विंशतिजिनेन्द्रभ्यः धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
प्राणी लोंग-सुपारी-लायची-बादाम सु पिस्ता सार। प्राणी श्री जिन-चर्ण चढ़ाय के शिवफल पावे सुखकार।।
प्राणी इन्द्र सुरग-तें आय के पूजत शिवनायक-पाँय। प्राणी चौबीसों जिन पूजिये, प्राणी चौबीसों जिन पूजिये।। ॐ ह्रीं समवसरणस्थ चतुर्विंशतिजिनेन्द्रभ्यः फलं निर्वपामीति स्वाहा।
प्राणी जल-फल अध्य बनाय के जिनराज चढ़ावत लाय। प्राणी आठों कर्म-विनाश के ‘कवि लाल' सदा बलि जाय।।
प्राणी इन्द्र सुरग-तें आय के पूजत शिवनायक-पाँय। प्राणी चौबीसों जिन पूजिये, प्राणी चौबीसों जिन पूजिये।। ऊँ ह्रीं समवसरणस्थ चतुर्विंशतिजिनेन्द्रभ्यः अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाल - दोहा चौबीसों जिनराज की कही समुच्च गाय। जय-जय-जय जयमाल यह नित-नित मंगलदाय।। जय चौबीसों जिनराज देव, सुर-नर-इन्द्रादिक करें सेव। जब बलि-बलि जाय नवाय शीश, जय-जय-जयत्रिभुवनतार ईश।। जय समवसरण तिनको रसाल, जय सुरनि-रचायो बहुविशाल। जय वृषभ आदि महावीर जान, क्रम-हान सु ऊपर कही मान।।
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