________________
चतुर्विंशति जिनपूजा प्रारंभ
(सुन्दरी छन्द) फिर सु इन्द्र प्रभु-पूजा करे नाय शीश सु भक्ति हिय धरे।
करत पूजा इन्द्र सु गायके हम यहाँ पूजत मन लायके। ॐ ह्रीं समवसरणस्थ चतुर्विंशतिजिनेन्द्राः ! अत्र अवतार अवतरत संवौष्ट। (आह्वानं)
ॐ ह्रीं समवसरणस्थ चतुर्विंशतिजिनेन्द्राः ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं समवसरणस्थ चतुर्विंशतिजिनेन्द्राः ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधापनम्।
(सन्निधिकरणम्)
अथ अष्टक (कार्तिक की चाल में) प्राणी पद्म-द्रह को नीर ले उज्जवल शशि की उनहार। प्राणी श्री जिन-चरण चढ़ाय के दुःख जन्म-जरा निरवार।।
प्राणी इन्द्र सुरग-तें आय के पूजत शिवनायक-पाँय। प्राणी चौबीसों जिन पूजिये, प्राणी चौबीसों जिन पूजिये।। ऊँ ह्रीं समवसरणस्थ चतुर्विंशतिजिनेन्द्रभ्यः जलं निर्वपामीति स्वाहा।
प्राणी केशर-अगरु-कपूर ले मलयागिर-गन्ध अपार।
1307