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नीर सु द्रह को सार रतनन की झारी भरों। तूप सु नव सुखकार दक्षिणदिश पूजा करों।।
___ऊँ ह्रीं दक्षिणदिशि नवस्तूपजिनप्रतिमाभ्यः जलं निर्वपामीति स्वाहा।
चन्दन केशर गार भव-आताप-व्यथा हरो। तूप सु नव सुखकार दक्षिणदिश पूजा करों।।
ऊँ ह्रीं दक्षिणदिशि नवस्तूपजिनप्रतिमाभ्यः चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
मुक्ताफल उनहार अक्षत जिन आगे वरों। तूप सु नव सुखकार दक्षिणदिश पूजा करों।।
ॐ ह्रीं दक्षिणदिशि नवस्तूपजिनप्रतिमाभ्यः अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
महके फूल अपार काम देख आपहिं डरों। तूप सु नव सुखकार दक्षिणदिश पूजा करों।।
ऊँ ह्रीं दक्षिणदिशि नवस्तूपजिनप्रतिमाभ्यः पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
फेनी-गोझा सार उत्तम षट् रस संचरों। तूप सु नव सुखकार दक्षिणदिश पूजा करों।।
ऊँ ह्रीं दक्षिणदिशि नवस्तूपजिनप्रतिमाभ्यः नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जगमग दीप निहार मोह-नाश जगतें करों।तूप सु नव सुखकार दक्षिणदिश पूजा करों।।
ऊँ ह्रीं दक्षिणदिशि नवस्तूपजिनप्रतिमाभ्यः दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
धूप अग्नि में डार दष्ट कर्म आपहिं जरें। तप स नव सुखकार दक्षिणदिश पूजा करों।।
ऊँ ह्रीं दक्षिणदिशि नवस्तूपजिनप्रतिमाभ्यः धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
फल उत्कृष्ट सम्हार शिवसुन्दरि क्षण में वरों। तूप सु नव सुखकार दक्षिणदिश पूजा करों।।
ऊँ ह्रीं दक्षिणदिशि नवस्तूपजिनप्रतिमाभ्यः फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जल-फल अध्य सु धारि ‘लाल' पूजि पांयन परें। तूप सु नव सुखकार
दक्षिणदिश पूजा करों।
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