________________
पारिजामभूपवृक्ष जिनपूजा प्रारम्भ
दोहा कल्पवृक्ष की भूमि में भूपवृक्ष परमान। ‘पारिजात' शुभ नाम है विदिशा गिन ‘ईशान'। ऊँ ह्रीं ईशानदिशि पारिजातभूपवृक्षस्य जिनप्रतिमाः अत्र अवतार अवतरत संवौष्ट्। (आह्वानं)
ऊँ ह्रीं ईशानदिशि पारिजातभूपवृक्षस्य जिनप्रतिमाः अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ॐ ह्रीं ईशानदिशि पारिजातभूपवृक्षस्य जिनप्रतिमाः अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
सन्निधापनम्। (सन्निधिकरणम्)
अष्टक (सुन्दरी छन्द) गिरि सु हिमवनतें धारा ढरी, जल सु ला जजों जिन अघहरी।
पारिजात सु वृक्ष महान् है, जिन सु पूज दिशा ईशान है। ॐ ह्रीं ईशानदिशि पारिजातभूपवृक्षस्य जिनप्रतिमाभ्यः जलं निर्वपामीति स्वाहा।
सरस चन्दन-केसर गारिये, जिन सु पूजत दाह-निवारिये।
पारिजात सु वृक्ष महान है, जिन सु पूज दिशा ईशान है।। ॐ ह्रीं ईशानदिशि पारिजातभूपवृक्षस्य जिनप्रतिमाभ्यः चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
परम पावन अक्षत लीजिये, पद अखय लहि पुंज सु दीजिये।
पारिजात सु वृक्ष महान् है, जिन सु पूज दिशा ईशान है।। ऊँ ह्रीं ईशानदिशि पारिजातभूपवृक्षस्य जिनप्रतिमाभ्यः अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
कमल-केतकि फूल सुहावने, जन सु पूजि परमपद पावने। पारिजात सु वृक्ष महान् है, जिन सु पूज दिशा ईशान है।।
1267