________________
कृष्णागरु कर्पूर मिलाके धूप दशांग सु लाओ। जिनपद पूजों खेय अग्नि में कर्म-जारि सुख पावो।।
समवसरण में कल्पवृक्ष की भूमि रत्नमय सोहे। मेरुवृक्ष ‘आग्नेय' दिशा में जिन-पूजत दिव-शिव होहे।। ऊँ ह्रीं मेरुवृक्षस्य आग्नेयदिशि जिनप्रतिमाभ्यः धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
लोंग-सुपारी-दाख-छुहारे-पिस्ता धोय धरीजे। श्रीजिनचरण जजें भवि-प्राणी भवसागरै सीजे।।
समवसरण में कल्पवृक्ष की भूमि रत्नमय सोहे। मेरुवृक्ष 'आग्नेय' दिशा में जिन-पूजत दिव-शिव होहे।। ऊँ ह्रीं मेरुवृक्षस्य आग्नेयदिशि जिनप्रतिमाभ्यः फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जलचन्दन-चावल शुभ लेके फूल सु लाल निहारो। नेवज-दीप-धूप-फल उत्तम अध्य पूजि अघ टारो।।
समवसरण में कल्पवृक्ष की भूमि रत्नमय सोहे।
मेरुवक्ष 'आग्नेय दिशा में जिन-पजत दिव-शिव होहे।। ऊँ ह्रीं मेरुवृक्षस्य आग्नेयदिशि जिनप्रतिमाभ्यः अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
1260