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चम्पक वनवृक्षस्थ जिनप्रतिमा पूजा प्रारम्भ वन मनोहर चम्पक जानिये, भूपवृक्ष सु चम्पक मानिये।
दिशा वायव सुन्दर सार जू, जिन सु पूज भये भवपार जू।। ॐ ह्रीं वायव्यदिशायां चम्पकवनवृक्षस्थजिनप्रतिमाः अत्रावतारावतरत संवौष्ट। (आह्वानं) ॐ ह्रीं वायव्यदिशायां चम्पकवनवृक्षस्थजिनप्रतिमाः अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं वायव्यदिशायां चम्पकवनवृक्षस्थजिनप्रतिमाः अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
सन्निधापनम्।(सन्निधिकरणम्)
अथाष्टक (चाल-नन्दीश्वरपूजा भाषा जी) उज्ज्वल जल सुन्दर लाय वास अनेक लई। धर मणिमय झारी-माँहि अघहर धार दई।। चम्पकवन सोहे सार सर-नर गुण-गावें। वायवदिश सुभग सुहाय पूजत शिव-पावें।। ॐ ह्रीं वायव्यदिशि चम्पकवनवृक्षस्थ-जिनप्रतिमाभ्यः जलं निर्वपामीति स्वाहा।
मलयागिरि चन्दनवास फैली सुखकारी नाशत भवताप सु त्रास जय जय बलिहारी।। चम्पकवन सोहे सार सर-नर गुण-गावें। वायवदिश सुभय सुहाय पूजत शिव-पावें।। ऊँ ह्रीं वायव्यदिशि चम्पकवनवृक्षस्थ-जिनप्रतिमाभ्यः चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
उज्ज्वल अक्षत सु प्रक्षाल पुंज करो भाई। अक्षयपद हो तत्काल पूजत जिन राई।। चम्पकवन सोहे सार सर-नर गुण-गावें। वायवदिश सुभय सुहाय पूजत शिव-पावें।। ॐ ह्रीं वायव्यदिशि चम्पकवनवृक्षस्थ-जिनप्रतिमाभ्यः अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
बहुविध उत्तम ले फूल जिनपद पूजीजे। रहे कामबाण नहिं मूल सन्मुख हूजीजे।। चम्पकवन सोहे सार सर-नर गुण-गावें। वायवदिश सुभय सुहाय पूजत शिव-पावें।। ऊँ ह्रीं वायव्यदिशि चम्पकवनवृक्षस्थ-जिनप्रतिमाभ्यः पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
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