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सहज शोभ वन में जानिये, लसत मन्दिर वापी आनिये।
सुभ
पर्वत-ताल-विताल जू करत क्रीड़ा देव सु 'लाल' जू॥ ॐ ह्रीं चतुर्थभूमौ अनेकरचनायुक्तचतुर्वन संयुक्त-समवशरणस्थित जिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
भूपवृक्षन की शोभा सुनो, बने हैं जा विध सेती भनो। वन अशोक स बीच विशेखिये, लसत, बारहदरी स देखिये । ॐ ह्रीं चतुर्थभूमौ अशोकवनेद्वादशद्वारीसंयुक्त-समवशरणस्थित जिनेन्द्राय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
दर सु बारह ऊपर जानियो, बन रहीं बैठक परमानियो । लसत कलशा और ध्वजा कहीं, बन रही सुन्दर शोभ सही।। ॐ ह्रीं चतुर्थभूमौ अनेकरचनायुक्तद्वादशद्वारी संयुक्त-समवशरणस्थित जिनेन्द्राय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
तिन सु बैठक की गोखें कहीं, सुभग दर - परदा शोभा लहीं। रतनमाल सु मोतीमाल जू, झकमकात सु जगमग लाल जू।।
ऊँ ह्रीं चतुर्थभूमौ द्वादशद्वार्याः उपरि अनेकरचनायुक्त-त्रियलगवाक्ष संयुक्त-समवशरणस्थित जिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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