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भूमि तीसरी कोट वलय अरु व्यास जू, भाग चवालिस जान परम सुखकार जू।
तहँ नाना-परकार सु फुलवारी बनी, ताको वर्णन सार सुनो चित दे गुनी।। ऊँ ह्रीं तृतीयभूमि-चत्वारिंशद्भाग-वलयव्यासपुष्पवाटिकासंयुक्त-समवशरणस्थित जिनेन्द्राय
अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
भाग चवालिस में फुलवारी जानियो, नानाविध के पुष्प-वृक्ष मन आनियो। तिनकी सुरभि-प्रवाह पाय अलि आइयो, विषयशक्ति परमान सु मदकर छाइयो।। ॐ ह्रीं तृतीयभूमि-चत्वारिंशद्भागपुष्पवाटिकासंयुक्त-समवशरणस्थित जिनेन्द्राय
अयं निर्वपामीति स्वाहा।
सो फुलवारी ऐसी विध-सो देखिये, भूमि तीसरी अन्तरगली सु देखिये।
प्रथम जान दरवाजो ताको लीजिये, ताके आगे भूमि सु सार गनीजिये।। ऊँ ह्रीं तृतीयभूमौ अन्तर्गल्याः द्वाराग्रे रम्यभूमिसंयुक्त-समवशरणस्थित जिनेन्द्राय
अयं निर्वपामीति स्वाहा।
रौंस-तने चौतरफा दरवाजे कहे, शोभे सार उतुंग सहज शोभा लहे। तिन पर गोखें सार सु तहिरी जानिये, ऊपर कलशा ध्वजासहित परमानिये।। ॐ ह्रीं तृतीयभूमौपुष्पवाटिका चतुर्दिसु अनेक रचनायुक्त-चतुधार-संयुक्त-समवशरणस्थित
जिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।
चली रौंस चौतरफा बीच चबूतरा, चार ओर सोपान जान मणिमय खरा।
तापर बारहदरी लहें शोभा खरी, ऊपर गोखें सार जु सुन्दरता भरी।। ॐ ह्रीं तृतीयभूमौ अन्तर्गल्याः द्वाराग्रे ससीमद्वादशद्वारीयुक्त-चतुःचतुष्क-संयुक्तसमवशरणस्थित जिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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