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अडिल्ल फिर सिवान पर चढि सुरपति तहँ पेखिये, धुलिसाल सु कोट नैन भर देखिये। ‘विजै' नाम दरवाजे भीतर जाय के, पूजत मानस्तम्भ सहज सुख पाय के।
पूर्वदिशायाः मानस्तम्भस्थित जिनेन्द्रप्रतिमा पूजा
दोहा मानस्तम्भ सु मूल में प्रतिमा श्री भगवान्। दे प्रदक्षिणा तीन जो पूजत इन्द्र महान।।
अडिल्ल
मानस्तम्भ अनुपम सुन्दर सोनो, मानरहित सब होंहि देखि मन-मोहनो। पूरब दिशा का जानि परम सुखदाय जू, पूजत मनवचकाय भविक सुख पाय जू।। ऊँ ह्रीं पूर्वदिशि मानस्तम्भस्थितजिनप्रतिमा अत्रावतारावतरत संवौष्ट। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः।
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधापनम्।
अथाष्टक (अडिल्ल छन्द) पद्म-द्रह का नीर सु उज्ज्वल लीजिये, सन्मुख हो जिनराज धार शुभ दीजिये।
पूरब मानस्तम्भ जिनेश्वर पूजिये, नाचत गाय बजाय सु हर्षित हूजिये।। ऊँ ह्रीं पूर्वदिशि मानस्तम्भ-स्थित-जिनेन्द्रेभ्यः जलं निर्वपामीति स्वाहा।
चन्दन केशर गारि कपूर मिलाइये, श्रीजिन चरण चढ़ाय परमसुख पाइये। पूरब मानस्तम्भ जिनेश्वर पूजिये, नाचत गाय बजाय सु हर्षित हजिये।। ऊँ ह्रीं पूर्वदिशि मानस्तम्भ-स्थित-जिनेन्द्रेभ्यः चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
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