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(सवैया इकतीसा) चमर-छत्र-झारी अरु कलशा बने विशाल, ध्वजा-बीजना-ठोना बा आरसी सु जानिये। मंगल सु द्रव्य सार नाम कहे हैं सु धार, एक सौ आठ एक-एक को प्रमानिये।। छत्तिस द्वारन की जु पारखें भई कितेक, एक सौ चवालिस प्रमाण हिये मानिये। सहस सुपन्द्रह विचार और पाँच सौ, बावन छह भये एक-एक द्रव्य हानिये।।
दोहा छत्र जु अष्टगुने करो एक लाख परमान। चौबिस सहस जु चार सौ सोलह भये सृजान।। ऊँ ह्रीं एकलक्ष-चतुर्विंशतिसहस्र-चतुःशत-षोडशमंगलद्रव्यविभूषित-षट्-विंशवार संयुक्ते
समवसरणे स्थिताय जिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।
पाण्डुकाल महाकाल ये मानव पद्म सुजान। पिंगल रत्न सु शंख सब नैसर्पण परमान।।
नव-निधि वर्णन
(सर्वया इकतीसा छन्द) पहली अन्न सार देय योग्य वसु दूजी जान, भाजन सु तीजी चौथी आयुध सु जानिये।
वस्तु देय पंचमी सु छठी आभरण सार, सातई सु बाजे देत बाजत बखानिये।। ___ आठई सुरत्न देत नवमी सु गेह देत, सर्व सुखसार देत निधियां परमानिये। ऐसी विधि सार सु गाड़ी के आकार खड़ी, लगे पहिया सु चार मन में यों ठानिये।।
दोहा
दरवाजे छत्तीस की भई पारखें सार। अधिक चवालिस एक सौ परमप्रीति उर-धार।। पाण्डुनिधी पन्द्रह सहस पाँच सौ बावन जान। इनको करो जु चौगुनी उतनी भई सुजान।। उनतालीस हजार गिन एक लाख वर वीर। नव सौ अड़सठ कीजिये सर्व पाश्व में धीर।।
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