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(दोहा छन्द) श्री जिन गुन छियालीस की माला रची बनाय। जो पहिरे भवि कंठ में नित नव-मंगल पाय।।
ॐ ह्रीं श्री चतुर्विंशतिजिनेन्द्रेभ्यः जमाला-पूर्णाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
(अडिल्ल छन्द) जो बाँचे यह पाठ सरल मन लायके। सुनहु भव्य दे कान सु मन हरषायके।। धन-धान्यादिक पुत्र-पौत्र-सम्पति धरे। नर-सुर के सुखभोग बहुरि शिवतिय वरे।।
इत्याशीर्वादः।
मानस्तम्भ सम्बन्धि सोपान वर्णन
(सुन्दरी छन्द) दिश सु पूरब सुन्दर पेखिये विजय दरवाजा सु विशेखिये।
चौक ता आगे सोपान हैं, करत वर्णन जैन-पुरान हैं।। ॐ ह्रीं पूर्वदिशायां विजयनामकद्वाराग्रे विद्यमानचतुष्कस्याग्रे सोपानसंयुक्ते समवसरणे स्थिताय
जिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।
द्वार 'वैजयन्त' स दसरो पनि ‘जयन्त' स 'अपराजित' धरो।
नाम दरवाजों के जानिये चौक और सिवान प्रमानिये। ॐ ह्रीं चतुर्दिक्षु चतुर्णा द्वाराणाम् अग्रे चतुष्करस्याग्रे चतुःसोपानसंयुक्ते समवसरणे स्थिताय
जिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।
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