________________
चैतकी चौथि श्यामा महाभवनी, ता दिना घातिया घाति शोभा बनी। बाह्य आभ्यन्तरे छन्द लक्ष्मीधरा, जयति सर्वज्ञ मैं पादसेवा करा।। ऊँ ह्रीं चैत्रकृष्णा-चतुर्थ्यां केवलज्ञान-प्राप्ताय श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
सप्तमी शुद्ध शोभे महासावनी, ता दिना मोच्छ पायो महापावनी।
शैलसम्मेदतें सिद्ध राज भये, आपकों पूजते सिद्ध काजा ठये। ॐ ह्रीं श्रावणशुक्ला-सप्तम्यां मोक्षमंगल-प्राप्ताय श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।5।
जयमाला पार्श्व पर्म-गुनराश है, पार्श्व कर्म-हरतार। पार्श्व शर्म-निजवास दो, पार्श्व धर्म-धरतार।1। नगर-बनारसि जन्म लिय, वंश-इक्ष्वाकु महान। आयु बरष-शत तुंग नव, हस्त सुनो
परमान।2।
पद्धरि छन्द जय श्रीधर श्रीकर श्रीजिनेश, तुव गुणगण फणि गावत अशेष। जय-जय-जय आनन्द-कन्द चन्द, जय-जय भवि-पंकज को दिनन्द।।3।।
जय-जय शिवतिय बल्लभ महेश, जय ब्रह्मा शिवशंकर गनेश। जय स्वच्छ चिदंग अनंगजीत, तुम ध्यावत मुनिगण सुहृद मीत।4।।
जय गरभागम-मंडित महंत, जग जनमन-मोदन परम सन्त। जय जनम-महोत्सव सुखद धार, भवि-सारंग को जलधर उदार।।5।
हरि गिरिवर पर अभिषेक कीन, झट तांडव निरत आरंभ दीन। बाजन बाजत अनहद अपार, को पार लहत वरणत अवार।।6।।
1179