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घतानन्द श्रीनेमिकुमारं जितमदमारं, शीलागारं, सुखकारं।भव-भय-हरतारं, शिव-करतारं, दातारं
धर्माधर।।15॥ ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय जयमाला-महायँ निर्वपामीति स्वाहा।
(मालिनी)सुख धन जस सिद्धी पुत्र पौत्रादि वृद्धी।। सकल मनसि सिद्धी होत है ताहि रिद्धी।।
जजत हरषधारी नेमि को जो अगारी।। अनुक्रम अरि जारी सो वरे मोक्षनारी।।
इत्याशीर्वादः, पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
श्रीपार्श्वनाथजिन-पूजा प्राणत-देवलोक तें ओय, वामादे-उर जगदाधार। विश्वसेन-सुत नुत-हरिहर हरि-अंक हरित-तन सुखदातार।। जरत नाग-जुग बोधि दियो जिहिं, भुवनेसुरपद परमउदार।
ऐसे पारसको तजि आरस, थापि सुधारस-हेत विचार।1 ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्)
ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजि नेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
सुर-दीरधि सों जल-कुम्भ भरों, तुव पादपद्मतर धार करों।
सुखदाय पाय यह सेवत हौं, प्रभुपाशर्व पार्श्वगुन सेवत हौं।। ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।।
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