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सुरस वरन रसना मनभावन, पावन फल सु मंगाय। मोक्ष-महाफल कारन पूजौं, हे जिनवर तुम पाय।।
दाता मोक्षके, नेमिनाथ जिनराय, दाता मोक्षके।। ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।8।
जल फल आदि साज शुचि लीने, आठों दरब मिलाय। अष्ठम छिति के राज करनको, जजौं अंग वसु नाय।।
दाता मोक्षके, नेमिनाथ जिनराय, दाता मोक्षके।। ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अनध्यपद-प्राप्तये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।9।
पंचकल्याणक (पाइता छंद) सित कातिक छट्ठ अमंदा, गरभागम आनन्दकन्दा।
शचि सेय शिवा-पद आई, हम पूजत मनवचकाई।। ॐ ह्रीं कार्तिकशुक्ला-षष्ट्यां गर्भमंगल-प्राप्ताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।।
सित सावन छट्ठ अमन्दा, जनमे त्रिभुवन के चन्दा।
पितु-समुद महासुख पायो, हम पूजत विघन नशायो।। ऊँ ह्रीं श्रावणशुक्ला-षष्ट्यां जन्ममंगल-प्राप्ताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।2।
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