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वैसाख चतुर्दशि श्यामा, हनि शेष वरी शिव वामा।
सम्मेद थकी भगवन्ता, हम पूजें सुगुन अनन्ता। ऊँ ह्रीं वैशाखकृष्णा-चतुर्दश्यां मोक्षमंगल-प्राप्ताय श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय
अयं निर्वपामीति स्वाहा।51
जयमाला (दोहा) आयु सहस दस वर्ष की, हेम-वरन तनसार।
धनुष पंचदश तुंग तन, महिमा अपरम्पार।।1। जय-जय-जय नमिनाथ कृपाला, अरिकुल गहन दहन दवज्वाला। जय-जय धरम-पयोधर धीरा, जय भव-भंजन गन-गम्भीरा॥2॥
जय-जय परमानन्द गुनधारी, विश्व-विलोकन जनहितकारी। अशरन-शरन उदार जिनेशा, जय-जय समवशरण आवेशा।।3।।
जय-जय केवलज्ञान-प्रकाशी, जयचतुरानन हनि भवफांसी। जय त्रिभुवनहित उद्यमवंता, जय जय जय जय नमि भगवतां।।4।।
जै तुम सप्त तत्त्व दरशायो, तास सुनत भवि निज-रस पायो। एक शुद्ध अनुभव निज भाखे, दो विधि राग-दोष छै आखे।।5।।
द्वौ श्रेणी द्वौ नय द्वौ धर्म, दो प्रमाण आगमगुन शर्मं। तीनलोक त्रयजोग तिकालं, सल्ल पल्ल त्रय वात बलाल।।6।।
चार बन्ध संज्ञा गति ध्यानं, आराधन निछेप चउ दान। पंचलब्धि आचार प्रमादं, बन्धहेतु पैंताले साद।।7।। गोलक पंचभव शिव-भौनें, छहों दरब सम्यक अनुकौने। हानि-वृद्धि तप समय समेता, सप्तभंग-वानी के नेता।।8।। संयम समुद्धात भय सारा, आठ करम मद सिध-गुन धारा। नवों लबधि नवतत्त्व प्रकाशे, नोकषाय हरि तूप हुलाशे।।9।।
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