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मार्गशीर्षे सुदी-ग्यारसी राजई, जन्मकल्यानको द्यौस सो छाजई। इन्द्र नागेंद्र पूजें गिरिंदें जिन्हें, मैं जजौं ध्यायके शीश नावैं तिन्हें ।। ऊँ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्ला - एकादश्यां जन्ममंगल-प्राप्ताय श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 2।
मार्गशीर्षे सुदीग्यारसीके दिना, राजको त्याग दीच्छा धरी है जिना । दान गोक्षोरको नन्दसेनें दयो, मैं जजौं जासु के पंच अचरज भयो । ॐ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्ला - एकादश्यां तपोमंगल- मंडिताय श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा। 31
पौषकी श्याम दूजी हने घातिया, केवलज्ञान-साम्राज्य-लक्ष्मी लिया। धर्मचक्री भये सेव शक्री करें, मैं जजों चर्न ज्यों कर्म वक्री टरे ऊँ ह्रीं पौषकृष्णा-द्वितीयायां केवलज्ञान-प्राप्ताय श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।4।
फाल्गुनी सेत पांच अघाती हते, सिद्ध आले बसै जाय सम्मेदतें । इन्द्रनागेन्द्र कीन्हीं क्रिया आयके, मैं जजों सो मही ध्यायके गायके ।। ऊँ ह्रीं फाल्गुनशुक्ला-पंचम्यां मोक्षमंगल-प्राप्ताय श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 1।
जयमाला (घत्तानंद छन्द)
तुअ नमित सुरेशा, नर नागेशा, रजत गनेशा भगति भरा। भवभयहरनेशा, सुखभरनेशा, जै जै जै शिव- रमनि-वरा। 1।
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