________________
लोंग लायची पिस्ता केला, कमरख शुचि ले री। मोक्ष-महाफल चाखन-कारन, जजौं सुकरि ढेरी।।
कुंथु सुन अरज दास-केरी, नाथ सुन अरज दास-केरी। ऊँ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।8।
जल चंदन तंदुल प्रसून चरु, दीप धूप ले री। फलजुत जजन करौं मन सुख धरि, हरो जगत-फेरी।।
कुंथु सुन अरज दास-केरी, नाथ सुन अरज दास-केरी। ऊँ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
पंचकल्याणक (छन्द - मोतियादाम) सुसावन की दशमी कलि जान, तज्यो सरवारथसिद्ध विमान।
भयो गरभागम-मंगल सार, जजें हम श्रीपद अष्ट-प्रकार।। ऊँ ह्रीं श्रावणकृष्णा-दशम्यां गर्भमंगल-मंडिताय श्रीकुन्थुनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।।
महा बैशाख सु एकम शुद्ध, भयो तब जनम तिज्ञान-समृद्ध। कियो हरि मंगल मंदिर-शीस, जजें हम अत्र तुम्हें नुत-शीत।। ऊँ ह्रीं वैशाखशुक्ल प्रतिपदि जन्ममंगल- मंडिताय श्रीकुन्थुनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।2।
1144