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श्री कुंथुनाथजिन-पूजा
(छन्द - माधवी तथा किरीट) अज-अंक अजै पद राजै निशंक, हरे भवशंक निशंकित-दाता। मदमत्त-मतंगके माथे गंथे, मतवाले तिन्हें हने ज्यों हरिहाता।। गजनागपुरै लिये जन्म जिन्हौं, रविप्रभ के नंदन श्रीमति-माता। सहकुंथु सुकुंथुनिके प्रतिपालक, थापौं तिन्हें जुत-भक्ति विख्याता।। ऊँ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्)
ऊँ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्)। ऊँ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
कुंथु सुन अरज दास-केरी, नाथ सुन अरज दास-केरी।
भवसिन्धु पर्यो हो नाथ, निकारो बांह पकर मेरी। प्रभु सुन अरज दास-केरी, नाथसुन अरज दास-केरी। जगजाल-परयो हों वेगि निकारो बांह पकर मेरी।टेक। सुर-तरनी को उज्ज्वल-जल भरि , कनकभंग में री।
मिथ्यातृषा निवारन-कारन, धरों धार नेरी।।
कुंथु सुन अरज दास-केरी, नाथ सुन अरज दास-केरी। ऊँ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।।
बावन-चंदन कदलीनंदन, घसिकर गुन टेरी।
तपत मोह-नाशन के कारन, धरों चरन नेरी।।
कुंथु सुन अरज दास-केरी, नाथ सुन अरज दास-केरी। ऊँ ह्रीं श्रीकुंथुनाथ जिनेन्द्राय भव-आताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।2।
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