________________
जय पंद्रम जिनजु अठारमेय, इकईसम वीर जिनेश सेय इनकी अरुणोदय बेलसार, जिन मुक्ति वधू सँग मिलन कार॥28॥ जय ऋषभ नेमि अरुवासुपूज्य, पद्मासन शिवलहि जगतपूज्य। अवशेष ऊर्ध्व आसन प्रवीन, निर्वाण पुरी प्रति गमन की न || 29
(सोरठा)
मोह प्रबल गढ़ तोर, सकल करम रिपु मारियो । लोकशिखर की ओर, गमन कियो अविचल भये ॥30॥ ऊँ ह्रीं वर्तमानकालसम्बन्धितचतुर्विंशतिजिनेन्द्राय नमः ।
(108 बार जाप देना)
प्रत्येक निर्वाण पूजा दोहा
तीर्थंकर भगवान के, वन्दों पंच कल्यान । अतिशय ठाम मनोगसव, वन्दों शिर धरि ध्यान ||
ढार (ते साधु मेरे उर वसो)
साधु जहाँ निजध्यान धरि, पावें सु केवल ज्ञान। वन्दों सुठौर प्रशस्त जो, तीर्थ प्रधान जहान
जा थान सों केवलपुरी, निर्वाण पहुँचे जान
पूजों सु थान पुनीत जो, जा सम सु थान न आन।।
ऊँ ह्रीं वर्तमानकाल-सम्बन्धि-जिनेन्द्राद्यसंख्यातमनुय अत्र अवतरतावतरत संवौषटं आह्वाननम्।
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणम्।
114