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अष्टक
मुनि-मन-सम शुचि नीर अति, मलय मेलि भरि झारी । जनम-जरा-मृत-ताप-हरन को, चरचों चरन तुम्हारी।। परमधरम-शम-रमन धरमजिन, अशरन - शरन निहारी । पूजौं पाय गाय गुन-सुन्दर नाचें दे दे तारी ॥
ऊँ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु- विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।1।
केशर चन्दन कदली-नन्दन, दाह निकन्दन लीनो।
जल-संग घस लसि शशि - समकर, भव- आताप हरीनो ।। परमधरम-शम-रमन धरमजिन, अशरन - शरन निहारी। पूजौं पाय गाय गुन-सुन्दर नाचें दे दे तारी ॥
ऊँ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय भवताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। 2।
जलज जीर सुखदास हीर हिम, नीर किरन - सम लायो। पुँज धरत आनन्द भरत भव-दंद-हरत हरषायो।। परमधरम-शम-रमन धरमजिन, अशरन - शरन निहारी । पूजौं पाय गाय गुन-सुन्दर नाचैं दे दे तारी।। ऊँ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। 3।
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