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पंचकल्याणक (छंद पाईता) कलि छट्ट असाढ़ सुहायौ, गरभागम मंगल गायौ।
दशमें दिवितें इत आये, शतइन्द्र जजे सिर नाये। ऊँ ह्रीं आषाढकृष्णा-षष्ठयां गर्भमंगल-मंडिताय श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।
कलि चौदस फागुन जानो, जनमे जगदीश महानो।
हरि मेरु जजे तब जाई, हम पूजत हैं चितलाई। ऊँ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा-चतुर्दश्यां जन्ममंगल-प्राप्ताय श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।2।
तिथि चौदस फागुन श्यामा, धरियो तप श्री अभिरामा।
नृप सुन्दर के पय पायो, हम पूजत अति सुख थायो। ऊँ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा-चतुर्दश्यां तपोमंगल-मंडिताय श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।
वदि भादव दोइज सोहे, लहि केवल आतम जो है।
अनअंत गुनाकर स्वामी, नित वंदों त्रिभुवन नामी। ॐ ह्रीं भाद्रपदक़ष्णा-द्वितीयायां केवलज्ञानमंगल-मंडिताय श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।41
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