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छन्द गीता तथा हरिगीता कालधौत वरन उतंग हिमगिरि पद्म-द्रहते आवई। सुरसरित प्रासुक-उदकसों भरि भंग धार चढ़ावई।। श्रेयांसनाथ जिनन्द त्रिभुवनवन्द आनन्दकन्द है।।
दखदंद-फंद-निकंद पूरनचन्द जोतिअमंद हैं।। ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।।
गोशीर वर करपूर कुंकुम-नीर-संग घसों सही। भवताप-भंजन-हेत भवदधि सेत चरन जजों सही।। श्रेयांसनाथ जिनन्द त्रिभुवनवन्द आनन्दकन्द है।।
दुखदंद-फंद-निकंद पूरनचन्द जोतिअमंद हैं।। ऊँ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय भवताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।2।
सितशालि शशिदुति शुक्ति सुन्दर मुक्तकी उनहार हैं। भरि धार पुंज धरंत पदतर अखयपद करतार हैं।। श्रेयांसनाथ जिनन्द त्रिभुवनवन्द आनन्दकन्द है।।
दुखदंद-फंद-निकंद पूरनचन्द जोतिअमंद हैं।। ऊँ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।।
सद सुमन सुमन-समान पावन, मलयतें गलि झंकरें। पद-कमलतर धरतें तुरित सो मदनको मद क्षयकरें।। श्रेयांसनाथ जिनन्द त्रिभुवनवन्द आनन्दकन्द है।।
दुखदंद-फंद-निकंद पूरनचन्द जोतिअमंद हैं।। ऊँ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।4।
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