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श्री चन्द्रप्रभ जिनपूजन
छप्पय
चारु चरन आचरन, चरन चितहरन चिह्नचर, चन्द चन्दतन चरित, चंद-थल चहत चतुर नर । चतुक चण्ड चकचूरि, चारि चिचक्र गुनाकर, चंचल चलित सुरेश, चूलनुत चक्र धनुरधर ॥ चर-अचर-हितू तारन-तरन, सुनत चहकि चिरनंद शुचि ।
जिनचंदचरन चरच्यो चहत, चित - चकोर नचि रच्चि रुचि ॥
दोहा
धनुष डेढ सौ तुंग तन, महासेन नृपनन्द । मातु लछमना उर जये, थापों चन्द - जिनन्द ॥
ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । (इति आह्वाननम् ) ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । (स्थापनम् ) (स्थापनम् ) ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । (सन्निधिकरणम्)
गंगा ह्रद निरमल नीर, हाटक भृंगभरा, तुम चरन जजों वर वीर, मेटो जनम जरा । श्री चंदनाथ दुतिचंद, चरनन चंद लगै, मन वचतन जजत अमंद, आतम जोति जगै ॥ ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
श्रीखण्ड कपूर सुचंग, केशर रंगभरी । घसि प्रासुक जल के संग, भव आताप हरी ॥ श्री चंदनाथ दुति चंद, चरनन चंद लगै, मनवचतन जजत अमंद, आतम जोति जगै ॥ ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।
तन्दुल सित सोम समान सम लय अनियारे । दिय पुंज मनोहर आन तुम पदतर प्यारे || श्री चंदनाथ दुति चंद, चरनन चंद लगै, मन वच तन जजत अमंद, आतम जोति जगै ॥ ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।
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