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तपत-दाहकों कंदन-चंदन मलयागिरि को घसि लायो। जगवंदन भौ-फंदन-खंदन, समरथ लखि शरनै आयौ ।।
संभव-जिन के चरन-चरचरौं, सब आकुलता मिट जावे।
निजि-निधि ज्ञान-दरश-सुख-वीरज, निराबाध भविजन पावे।। ॐ ह्रीं श्री संभावनाथ जिनेन्द्राय संसारताप-विनाशाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।2।
देवजीर सुखदास कमल-वासित, सित सुन्दर अनियारे। पुंज धरों जिन-चरनन आगे, लहौं अखयपद को प्यारे ।।
संभव-जिन के चरन-चरचतें, सब आकलता मिट जावे।
निजि-निधि ज्ञान-दरश-सुख-वीरज, निराबाध भविजन पावे।। ॐ ह्रीं श्री संभावनाथ जिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान निर्वपामीति स्वाहा।31
कमल केतकी बेल चमेली, चंपा जूही सुमन वरा। तासों पूजत श्रीपति तुम पद, मदनबान विध्वंस करा । संभव-जिन के चरन-चरचतें, सब आकुलता मिट जावे।
निजि-निधि ज्ञान-दरश-सुख-वीरज, निराबाध भविजन पावे।। ॐ ह्रीं श्री संभावनाथ जिनेन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।4।
घेवर बावर मोदन मोदक, खाजा ताजा सरस बना। तासों पद श्रीपति को पूजत, क्षुधारोग ततकाल हना ।। संभव-जिन के चरन-चरचतें, सब आकुलता मिट जावे।
निजि-निधि ज्ञान-दरश-सुख-वीरज, निराबाध भविजन पावे।। ॐ ह्रीं श्री संभावनाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।5।
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