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दंश गंध हुताशन मांहि, हे प्रभु खेवत हों। मिस धूमकरण जारि जाहिं, तुमपद सेवत हो।। चौबीसों श्री जिनचन्द, आनन्दकन्द सही । पदजजत हरत भवफंद पावत मोक्षमही ।। ऊँ ह्रीं श्री श्रीवृषभादिवीरांतेभ्यो अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा॥7॥
शुचि पक्व सुरस फलसार सबऋतु के ल्यायो। देखत दृग-मन को प्यार पूजत सुख पायौ।। चौबीसों श्री जिनचन्द, आनन्दकन्द सही । पदजजत हरत भवफंद पावत मोक्षमही ।।
ऊँ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरांतेभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा॥8॥
जल फल आठो शुचिसार, ताको अर्घ करो। तुमको अरपौं भवतार, भवतरि मोक्ष वरो।। चौबीसों श्री जिनचन्द, आनन्दकन्द सही । पदजजत हरत भवफंद पावत मोक्षमही ॥ ऊँ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरांतेभ्यो अनर्घ्य पद प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा॥9॥
जयमाला - दोहा
श्रीमत तीरथनाथपद, माथ नाय हितहेत। गावों गुणमाल अबै, अजर अमरपद देत ।। 1 ।।
घता
जय भवतम भंजन जनमन कंजन, रंजन दिनमनि स्वच्छ करा । शिवमग परकाशक अरिगननाशक, चौबीसों जिनराज वरा ॥2॥
पद्धरी
जय ऋषीदेव ऋषिगन नमंत, जय अतिज जीतवसुअरि तुरंत । जय संभव भवभय करत चूर, जय अभिनंदन आनंदपूर || 3 | जय सुमति सुमतिदायक दयाल, जय पद्म पद्मद्युति तन रसाल। जय जय सुपास भवपाश-नाश, जय चंदचंदतनदुतिप्रकाश ॥4॥
जय पुष्पदंत दुतिदंत सेत, जय शीतल शीतल गुननिकेत।
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