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उर्ध्व अध अरु मध्य माहीं भवन सुन्दर जानिए। गणधर असंख्या कहत शुभ जे पूज तिनकी ठानिए।।
पूजते सुर असुर नरपति द्रव्य मनहर चाव से।
हम भी नमे मन शुद्ध हो जिन भवन भावे भाव से।। ऊँ ह्रीं श्री त्रैलोक्यसम्बन्धि असंख्यकृत्रिमाकृत्रिम जिनचैत्यालयेभ्यो
अयं निर्वपामीति स्वाहा।।4।
ऊँ ह्रीं श्री जिन चैत्यालये देवेभ्यो नमः स्वाहा। (नव बार जपे)
जयमाला - दोहा कृत्या कृत्रिम है सही तीन लोक जिन थान। कहुंमहा जय मालिका होय पाप की हान।
पद्धडी जिन मन्दिर प्रभु के सुभगसार, जय कृत्या कृत्रिम शुभ अपार। तिन भुवन नमे हम बार बार, कर भक्ति विनय उर धार धार।।
जय शिखर बने हैं अति उतंग, जहां होवे मानी मान भंग। तिन भवन नमे हम बार बार, कर भक्ति विनय उर धार धार।।
जय गगन चुम्बि दीखे अपार, जिन दर्शन नाशे अन्धकार। तिन भवन नमे हम बार बार, कर भक्ति विनय उर धार धार।। जय स्वर्ण कलश बहु चमचमाय, जय करत प्रशंसा देव आय। तिन भवन नमे हम बार बार, कर भक्ति विनय उर धार धार।। जय ध्वजा उड़े शुभ शिखर सार, मनु स्वर्ण संपदा को पुकार। तिन भवन नमे हम बार बार, कर भक्ति विनय उर धार धार।। जय स्वर्ण रत्न निर्मित लखाय, जय उपल सु मृतिका के लहाय। तिन भवन नमे हम बार बार, कर भक्ति विनय उर धार धार।।
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