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________________ प्रश्न उत्तर जिसमें सुशोभते प्रश्न व्याकरणं मन मोहते। लक्ष तेरानु शुभ पाइया सहस सोलह पद जिन गाह्या।। ऊँ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित षोडश सहस्राधिक त्रिनवति लक्ष 9316000 पद प्रमाण प्रश्न व्याकरणांगायऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।24। उदय उदीर्णा कर्म बखानते कहत सूत्र विपाक सुजानते। एक कोटि चौरासी हजार है पद महा जिसमें व्यवहार है।। ॐ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित चतुर शांति लक्षाधिक एक कोटि 18400000 पद प्रमाण विपाक सूत्रागायऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।25। चार कोटि सु पन्द्रह लाख है, सहस दो पद की शुभशाख है। अंग एकादश के पद यहा करत पूजन ये नुत हो अहा।। ऊँ ह्रीं श्री अरहन्तदेव कथित द्विसहस्राधिकपंचदश लक्ष चतुष्कोटि पद प्रमाण 41502000 एकादशांगाय पूर्णाऽयं निर्वपामीति स्वाहा। (अडिल्ल) अरब एक वसु कोटि सु जिनवर गाइया। लक्ष सु अडसट सहस छपन्ना मानिया।। पंच पदों कही संख्या अनमोल जी। पूजों वसुविधि द्रव्य स दिल को खोलजी।। ऊँ ह्रीं श्री दृष्टी वाद अंगस्य पंचाधिकषट्पंचशत सहस्राष्टषष्टी लक्षाष्ट कोटयैकारब पद प्रमाण 1086856005 पद प्रमाण द्वादशांगेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा। पंच प्रज्ञप्ति अर्घ (अडिल्ल) चन्द्र आयु गति विभव निरूपण है सही। चन्द्र प्रज्ञप्ति नाम लहै इस ही मही।। छत्तिस लाख सु पंच सहस पद जिन कहै। पूजू मन वच काय हर्ष उर में लहै।। ऊँ ह्रीं पंच सहस्राधिक षट्त्रिंशद लक्ष 3605000 पद प्रमाण चन्द्रायुगति विभव प्ररूपिका चन्द्र प्रज्ञप्तेऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।26।। 1029
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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