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__ मूर्छित होय शरीर में दख ना मम होजाय।
भय करता वह रात दिन समकित मल उपजाय।। ऊँ ह्रीं वेदना भय मल दोष रहित सम्यग्दर्शन जिन मार्गेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।3।
मम रक्षक कोई नहीं मन में शंका लाय।
भय करता वह रात दिन समकित मल उपजाय।। ऊँ ह्रीं आरक्षाभय मल दोष रहित सम्यग्दर्शन जिन मार्गेभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।4।।
मम वस्तु यह प्रिय अति चुरा नहीं ले जाय।
भय करता वह रात समकित मल उपजाय।। ऊँ ह्रीं अगुप्त भय मल दोष रहित सम्यग्दर्शन जिन मार्गेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।5।।
बाल वृद्ध युवक रहुं मरण नहीं हो जाय।
भय करता वह रात दिन समकित मल उपजाय।। ऊँ ह्रीं मरण भय मल दोष रहित सम्यग्दर्शन जिन मार्गेभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।6।।
बज्रपात गिरकर कहीं मरण बीच नहीं पाय।
भय करता वह रात दिन समकित मल उपजाय।। ॐ ह्रीं आकस्मिक भय मल दोष रहित सम्यग्दर्शन जिन मार्गेभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।7।
8 विनय के अंग-नाराच अंग पूर्व शास्त्र अरु अन्य ग्रन्थ राय के। सूत्र अर्थ ज्यों लिखा वाणि में लायके।।
करत अभिमान नहीं विनय अन्य ध्यायके। पूजहुँ द्रव्य वसु भक्ति उर लायके।। ऊँ ह्रीं श्री जिनवर देव कथित बहुमानाचार विनयेभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥1॥
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