SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1000
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खट्ठा मीठा कटक कषाय चरपरा यह स्वाद कहाय। जीते इनको मुनिगण राय पूजू वसुविधि अध्य चढ़ाय।। ऊँ ह्रीं श्री जिव्हा इन्द्रिय विजय प्राप्त साधु देवेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।2।। घ्राणेन्द्रिय है भेद सुदोय वश में इसके सब जग होय। जीते इनको मुनिगण राय पूजू वसु विधि अध्य चढ़ाय।। ऊँ ह्रीं श्री घ्राणेन्द्रिय विजय प्राप्त साधु देवेभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।3।। नयना इन्द्रिय पांच सुहाय, विषय कहै है गणधर राय। जीते इनको मुनिगण राय पूजू वसु विधि अध्य चढ़ाय।। ऊँ ह्रीं श्री नयना इन्द्रिय विजय प्राप्त साधु देवेभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।4।। कर्णेन्द्रिय के विषय जु सात कहत जिनेश्वर उर हर्षात। जीते इनको मुनिगण राय पूजू वसु विधि अध्य चढ़ाय।। ऊँ ह्रीं श्री कर्णेन्द्रिय इन्द्रिय विजय प्राप्त साधु देवेभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।5।। षडावश्यक 6 अर्घ (पद्धडी) सब जीवों से समता कराय, नहि राग द्वेष मन में लहाय। जे आर्तरौद्र द्वय ध्यान त्याग अरु समायिक करते सुभाग।। ॐ ह्रीं श्री सामायिक मूल गुण धारक साधु देवेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा॥1॥ जे करे संस्तवन भक्ति धार, चतुवीस जिनेश्वर गुण विचार। यह आवश्यक सु द्वितीय जान, हम पूजे वसु विधि द्रव्य आन।। ऊँ ह्रीं श्री स्तवन मूल गुण धारक साधु देवेभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।2। 1000
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy