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तम खंडित मंडित नेह, दीपक जोवत हूँ | तुम पदतर हे सुखगेह, भ्रमतम खोवत हूँ || श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो | जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति-दायक हो || ओं ह्रीं श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय मोहांधकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।६।
हरिचंदन अगर कपूर, चूर सुगंध करा | तुम पदतर खेवत भूरि, आठों कर्म जरा || श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो | जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति-दायक हो ||
ओं ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।७।
रितुफल कल-वर्जित लाय, कंचनथार भरूं | शिवफलहित हे जिनराय, तुम ढिंग भेंट धरूं || श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो | जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति-दायक हो ||
ओं ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।८।
जल-फल वसु सजि हिम-थार, तन-मन मोद धरूं | गुण गाऊँ भवदधितार, पूजत पाप हरूं || श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो | जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति-दायक हो ||
ओं ह्रीं श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।९।
___पंचकल्याणक-अर्ध्यावली मोहि राखो हो शरणा, श्री वर्धमान जिनरायजी, मोहि राखो हो शरणा | गरभ साढ़-सित-छट्ठ लियो थिति, त्रिशला-उर अघहरना ||
सुरि-सुरपति तित सेव करी नित, मैं पूनँ भवतरना | नाथ! मोहि राखो हो शरणा, श्री वर्धमान जिनरायजी, मोहि राखो हो शरणा | ओं ह्रीं अषाढशुक्ल-षष्ठयां गर्भमंगल-मंडिताय श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।
जनम चैत-सित-तेरस के दिन, कुंडलपुर कन वरना | सुरगिरि सुरगुरु पूज रचायो, मैं पूजू भवहरना |
नाथ! मोहि राखो हो शरणा, श्री वर्धमान जिनरायजी, मोहि राखो हो शरणा | ओं ह्रीं चैत्र-शुक्ल-त्रयोदश्यां जन्ममंगल-मंडिताय श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।२।
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