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यदि यह बल मुझको भी दे दो, फिर कुछ न माँगने आऊँगा ||२६||
कह रहा भक्ति के वशीभूत, हे दयासिन्धु! स्वीकारो तुम | जैसे तुम जग से पार हुये, मुझको भी पार उतारो तुम ||२७||
जिसने भी शरण तुम्हारी ली, वह खाली न रह पाया है | अपनी अपनी आशाओं का, सबने वाँछित फल पाया है ||२८||
बहुमूल्य सम्पदायें सारी, ध्याने वालों ने पाई हैं | पारस के भक्तों पर निधियाँ, स्वयमेव सिमटकर आई हैं ||२९||
जो मन से पूजा करते हैं, पूजा उनको फल देती है प्रभु पूजा भक्त पुजारी के, सारे संकट हर लेती है ||३०|| जो पथ तुमने अपनाया है, वह सीधा शिव को जाता है |
जो इस पथ का अनुयायी है,वह परम मोक्षपद पाता है |३१| ओं ह्रीं श्रीअहिच्छत्र पार्श्वनाथजिनेन्द्र जयमाला-पूर्णार्यंसी निर्वपामीति स्वाहा ।
(दोहा) पार्श्वनाथ-भगवान् को, जो पूजे धर ध्यान | उसे लोक-परलोक के, मिलें सकल वरदान ||
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलिं क्षिपेत् ॥
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