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(घत्ता) जय पारस देवं, सुरकृत सेवं, वंदत चरण सुनागपती | ___ करुणा के धारी, पर उपकारी, शिवसुखकारी कर्महती || ओं ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय जयमाला-पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।
(अडिल्ल) जो पूजे मन लाय भव्य पारस प्रभु नित ही | ताके दुःख सब जाय भीति व्यापे नहि कित ही || सुख-संपति अधिकाय पुत्र-मित्रादिक सारे | अनुक्रमसों शिव लहे, 'रत्न' इमि कहें पुकारे ||
॥इत्याशीर्वादः पुष्पांजलिं क्षिपेत्॥
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